K-ramp review in Hindi: कैसी है किरण अब्बाराम की प्रेम कहानी के-रैंप?
क्या आप कल्पना कर सकते हैं कि कोई अपराधी ऐसी साजिश रचे कि पुलिस उसे कई दशकों तक ना पकड़ पाए? पहचान बदलने की चाल, जीवन बीमा, धोखा और अपनी मौत तक झुठलाना सब कुछ सच हो। अगर हां तो कुरुप उस कहानी का नाम है जिसे सुनने पर रोंगटे खड़े हो जाते हैं। नमस्ते दोस्त, मैं हूं आपका दोस्त और आज हम बात करेंगे फिल्म कुरुप की। एक क्राइम बायोपिक जो भारत के सबसे चर्चित फरार अपराधियों में से एक सुकुमार कुरुप की जिंदगी पर आधारित है। निर्देशक हैं श्रीनाथ राजेंद्रन। मुख्य भूमिका निभाए हैं दुलकर सलमान ने।
कास्ट और क्रू
| विभाग | विवरण |
|---|---|
| Cast | Kiran Abbavaraam, Yukti Thareja & Others |
| Writer - Director | Jains Nani |
| Producers | Razesh Danda, Shiva Bommak |
| Banner | Hasya Movies, Ruudransh Celluloid |
| Co-Producer | Balaji Gutta |
| Music | Chaitan Bharadwaj |
| Cinematographer | Sateesh Reddy Masam |
| Production Designer | Brahma Kadali |
| Editor | Chota K Prasad |
| Dialogues | Ravindra Rajaa |
| Action | Prudhvi |
| Executive Producer | K Appaji |
| Line Producer | Kiran Popuri |
| VFX | Gravity VFX |
| DI | B2H |
| PRO | GSK Media, Vamsi Sekhar |
| Public Designer | Anil & Bhanu |
| Marketing | Haashtag Media |
| Audio On | Aditya Music |
मूवी का सार
फिल्म की शुरुआत होती है 2005 में केरल के एक पुलिस अधिकारी यानी डीवाईएसपी कृष्णा दास के रिटायरमेंट से और एक डायरी के मिलने से जो कहानी को पुरानी घटनाओं में वापस खींचती है। असल में कहानी 60 70 80 के दशक से शुरू होती है। हम देखते हैं कैसे एक युवा जीके जिसे बाद में नाम मिलता है सुधाकरा कुरुप धीरे-धीरे एक साधारण व्यक्ति से धोखे पहचान बदलने और अपराध की दुनिया में प्रवेश करता है। उसकी सबसे बड़ी साजिश थी किसी दूसरे इंसान की मौत को अपनी मौत दिखाना और जीवन बीमा की रकम हड़प लेना। उसने पहचान छुपाने, अधिकारियों को चकमा देने, विदेशों में पनाह लेने जैसे तरीके अपनाए। दुलकर सलमान ने कुरूप की भूमिका निभाते हुए पेश किया है एक चतुर आकर्षक लेकिन नैतिकता से खाली इंसान। उनकी आवाज, बॉडी लैंग्वेज, कपड़ों से लेकर चाल ढाल तक भूमिका में गहराई दिखाती है। इंद्रजीत सुकुमारन ने कृष्णा दास के रूप में एक पक्का पुलिस अधिकारी दिखाया है जो इंतजार करता है, जांच करता है लेकिन हर कदम पर कुरूप के चालों से उलझता है। शाइन टॉम चाकू, शोभिता धुलीपाला और बाकी सपोर्टिंग कास्ट भी अपने हिस्से में प्रभावी हैं। कुछ किरदार ज्यादा गहराई के साथ कुछ थोड़े कम। फिल्म में समय, सीमा यानी 60, 70ज, 80,ज 90ज के सेटअप, पोशाक, मौसम, गाड़ियां, संगीत सब मिलकर एक भरोसा जगाते हैं कि आप उस युग में हैं। बैकग्राउंड स्कोर और संगीत ने माहौल को गहरा बनाया है। थ्रिल को बढ़ाया है। स्क्रीनप्ले नॉन लीनियर है। वर्तमान, अतीत और अनुमानित अज्ञात काल यह सब मिलकर कहानी को डरावना और मिस्ट्री बनाते हैं। कहानी के कुछ हिस्से ज्यादा खींचे हुए लगते हैं। पहला भाग कभी-कभी धीमा हो जाता है। कुछ पात्रों और संदर्भों को ज्यादा संवेदनशील तरीके से संभाला जा सकता था। विशेष रूप से वह हिस्से जो कुरुप की छवि को करिश्माई या रोमांटिक तरीके से दिखाते हैं।
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आलोचना
आलोचक कहते हैं कि फिल्म कई बार अपराधी को एक तरह से हीरो की तरह प्रस्तुत कर देती है। कुछ हिस्से खासकर अज्ञात या कल्पित हिस्से फिल्म के अंत में दर्शकों को पूरी तरह संतुष्ट नहीं करते क्योंकि वह तथ्य पर आधारित नहीं होते। कल्पना और एरर का मिश्रण लगता है। रहस्य की खोज कुरुप की डायरी में क्या है? इस सवाल ने कहानी को आगे बढ़ाया है। मानव प्रकृति की झलक, लालच, पहचान की भूख और झूठ और धोखे के बीच किस तरह व्यक्ति खुद को तैयार करता है? मोरल का द्वंद्व। फिल्म बताती है कि अपराध सिर्फ कानूनी गलती नहीं है। यह मानवीय निर्णयों, परिस्थितियों और मौके की भी कहानी है। कुरुप एक ऐसी फिल्म है जो सिर्फ अपराध की कहानी नहीं बताती बल्कि उस अपराधी की मानसिकता और उसकी चालाकियों को समझने की कोशिश करती है। यह फिल्म उन लोगों के लिए है जो थ्रिलर पसंद करते हैं और सच्ची घटनाओं की कहानियों में गहराई ढूंढना चाहते हैं। मेरा मानना है यह लगभग 3.5 से चार स्टार के लायक है। अगर आप फिल्म देखने बैठ रहे हैं तो ध्यान दें, यह साधारण मनोरंजन नहीं है। यह सोचने पर मजबूर करने वाली कहानी है। अगर आपने कुरुब देखी है तो बताइए आपको कुरुप का चरित्र कितनी हद तक विश्वास योग्य लगा और क्या फिल्म ने अपराध के हीरोइज्म का खतरा टाला या उल्टा उसे बढ़ा दिया?
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